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बचपन

बचपन में एक लड़की बेटी कहलाती है और पापा के कंधों पर अपनी मंजिल सजाती है ,

मां के साथ में खाना पकाती है और जिंदगी की सारे दस्तूर समझ जाती  हैl

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है…

भाई के साथ लड़ते-लड़ते वह अपना पूरा प्यार दिखा जाती है ,

और जब भी कोई अच्छा कदम उठाती है तो पापा के दिल में एक नई आस जगाती हैl

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है… 

पढ़ाई में अव्वल आने पर मां को एक अलग संतोष दिलाती है,

और जिंदगी में कुछ बन जाने के बाद पापा के कंधों से उतरकर अपनी एक अलग पहचान बनाती है l

और एक दिन वह बेटी बड़ी हो जाती है,

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है…

पापा की लाडली और मां की प्यारी कहलाती है और पता नहीं कब वह सयानी हो जाती है,

बचपन में वह लड़की बेटी कहलाती है और एक दिन उसकी सगाई हो जाती है l

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है…

भाई की जो बहना कहलाती है और बाद में उसकी शादी हो जाती है,

विदाई में वो सबको रुलाती है और उस दिन के बाद से वह दूसरे घर की बेटी बन जाती हैl

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है…

शादी के बाद भी वह घर का पूरा बोझ अपने सर पर उठा जाती है पता नहीं वह कैसे यह सब अकेले  सह जाती है l

सच में बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है…

और उसके जीवन में भी सबसे बड़ी खुशी तब आती है जब उसकी भी एक प्यारी-सी बेटी हो जाती है,

और उसे भी वह अपनी तरह अपनी पलकों पर बैठlती  है l

तभी तो बेटी बड़ी कमाल की कहलाती है ll

 

लेखक/लेखिका : रीया चौरसिया 

लेखक/लेखिका का परिचय : आई.पी.एम. प्रथम वर्ष की छात्रा 

#आईआईएम बोधगया                                    #बचपन                                       #बेटी        

#पापा की लाडली                                         #मां की प्यारी                                 #भाई की बहना