फल्गू
संपूर्ण भूमण्डल की अमृत धारा, ये नदियाँ,नदियों की वजह से ही यहाँ सभ्यताएँ जन्म लेती है। बस्तियाँ बसती है और कहानियाँ बनती है। ये नदियों का कल- कल करता जल ही है,जो मनुष्य और अन्य जीवों की प्यास बुझाती है। ऐसी ही एक नदी है, फल्गू । जो भारत के बिहार राज्य के गया जिले में बहती है। जो निरंजना के नाम से भी जानी जाती है। एक ऐसी नदी, जिसकी पूजा गाँव वाले सदियों से करते आ रहे हैं। फल्गू नदी, सभी धर्मों के उत्थान का केंद्र है। यहाँ पिंड दान करने से आत्मा को सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। लेकिन अब इसकी दशा बदलती जा रही है। ये आपकी और हम सबकी पानी के प्रति निरक्षरता का प्रतीक है| इसी का वर्णन यहाँ एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है :
फल्गू
उद्गम मेरा तो जानते ही हो,
अंत भी तो पहचानते ही हो।
मझधार के तो खुद ही हिस्से हो,
मेरी इस कहानी के तुम भी तो किस्से हो।
बुद्ध के तप की साक्षी मैं हूँ,
सीता के श्राप की पीड़ित भी।
राम के क्रोध की सहनी मेरी,
सब के पिंड-दान की ग्रहणी भी।
फिर भी तुम मुझे मैला करते,
मेरे ही जल को विषैला करते।
अपने पूर्वजों के स्वर्ग की राह को,
नरक जैसा तुम क्यों करते।
निर्मल थी उद्गम के समय मैं,
मैला तुमने मझधार में किया।
और ये सब सहकर भी मैंने,
तुम सब को भवसागर पार किया।
अब भी समय है, सुन लो उसे,
जो मैं तुम सब से कहती हूँ।
ये तो तुम्हें ही तय करना है,
कि मैं कैसे रहती हूँ।
लेखक/लेखिका: अविनाश कुमार शर्मा
लेखक/लेखिका का परिचय: : आई.पी.एम. प्रथम वर्ष का छात्र
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